किसी ने मुझसे पूछा था..
क्या तुम बदल गई हो..?
जवाब में मैं मुस्कुरा दी…
फिर पूछा गया… ये मुस्कुराहट किस बात की…?
जवाब में मैं फिर मुस्कुरा दी…
आज मैं कहती हूँ..
हाँ मैं मुस्कुराई थी..
क्यूँकि मैं बदल गई हूँ…
हाँ मैं मुस्कुराई थी..
क्यूँकि तुम मुझे भावुक नहीं कर सकते..
हाँ मैं मुस्कुराई थी..
क्यूँकि तुम मुझे भावुक करने की कोशिश कर के.. और सख्त बना देते हो…
हाँ मैं मुस्कुराई थी..
क्यूँकि मुझे पता है.. न तुम, न वो और न कोई और ही हमेशा मेरे साथ रहोगे..
हाँ मैं मुस्कुराई थी..
क्यूँकि तुम अब वो नही हो.. जो हुआ करते थे…
हाँ मैं मुस्कुराई थी..
क्यूँकि तुम मुझे समझ नहीं पाओगे..
हाँ मैं मुस्कुराई थी..
क्यूँकि मैंने अकेले रहना सीख लिया है..
हाँ मैं मुस्कुराई थी..
क्यूँकि मुझे फर्क नही पड़ता.. तुम्हारी किसी बात का…
हाँ मैं मुस्कुराई थी..
क्यूँकि और भी बातें हैं जो मैं कहूँगी नहीं.. और तुम समझोगे नहीं…
हाँ मैं मुस्कुराई थी..
क्यूँकि मैंने मुस्कुराना सीख लिया है…
हाँ मैं मुस्कुराई थी..
क्यूँकि मैं बदल गई हूँ…
हाँ मैं मुस्कुराई थी..
क्यूँकि मैं किसी से उम्मीद नहीं करती..
हाँ मैं मुस्कुराई थी..
क्यूँकि मैं… बस मुस्कुराई थी..