कल्पना कीजिए कि आप फेसबुक, इंस्टाग्राम या एक्स खोलते हैं और एक चेतावनी सामने आती है:
“अत्यधिक उपयोग सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है।”
यह मजाक नहीं है, बल्कि कई वैज्ञानिक शोध इस चिंता को उजागर कर रहे हैं। ठीक वैसे ही जैसे सिगरेट और शराब के पैकेटों पर स्वास्थ्य चेतावनी होती है, सोशल मीडिया के दुष्प्रभावों को लेकर भी गंभीर चर्चा हो रही है।
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सोशल मीडिया पर चेतावनी क्यों जरूरी?
अमेरिका के पूर्व सर्जन जनरल और भारतीय मूल के डॉ. विवेक मूर्ति मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता फैला रहे हैं। उन्होंने सोशल मीडिया के अत्यधिक उपयोग को खतरनाक बताया है। उनका मानना है कि जैसे सिगरेट और शराब के पैकेट पर चेतावनी दी जाती है, वैसे ही सोशल मीडिया ऐप्स पर भी स्वास्थ्य चेतावनी होनी चाहिए।
दुनिया में सोशल मीडिया पर सख्ती
नवंबर 2023 में ऑस्ट्रेलिया ने 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया प्रतिबंध लागू किया। अब कई अन्य देश भी इस दिशा में सख्त कानून लाने की तैयारी कर रहे हैं।
कैसे प्रभावित हो रहा है दिमाग?
शोधों के अनुसार, अत्यधिक सोशल मीडिया उपयोग से दिमाग की संरचना प्रभावित होती है। खासतौर पर बच्चों और किशोरों के मस्तिष्क पर इसका नकारात्मक असर देखा गया है।
- भावनात्मक स्वास्थ्य पर प्रभाव: ‘रेडसियर’ रिसर्च फर्म की रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय उपयोगकर्ता रोज़ाना औसतन 7.3 घंटे स्क्रीन पर बिताते हैं, जिससे भावनात्मक सेहत प्रभावित हो रही है।
- कमजोर होती याददाश्त: नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन की स्टडी बताती है कि सोशल मीडिया की लत से नींद प्रभावित होती है। इससे याददाश्त कमजोर होने के साथ-साथ चिंता और अवसाद भी बढ़ सकता है।
- ध्यान क्षमता में गिरावट: लगातार स्क्रॉलिंग करने से अटेंशन स्पैन कम हो रहा है, जिससे पढ़ाई और अन्य महत्वपूर्ण कार्यों पर असर पड़ रहा है।
सोशल मीडिया की लत से छुटकारा कैसे पाएं?
मनोचिकित्सक डॉ. कृष्णा मिश्रा के अनुसार, किसी भी बुरी आदत को छोड़ने के लिए उसे अच्छी आदत से बदलना जरूरी है। इसके लिए कुछ सुझाव इस प्रकार हैं:
✅ सोशल मीडिया का उपयोग सीमित करें।
✅ पढ़ाई, खेल या किसी रचनात्मक कार्य में ध्यान लगाएं।
✅ सोने से पहले स्क्रीन टाइम से बचें।
✅ परिवार और दोस्तों के साथ अधिक समय बिताएं।
ब्रेन फंक्शनिंग सुधारने के तरीके
यदि लंबे समय तक अत्यधिक सोशल मीडिया उपयोग हुआ हो, तो दिमागी कार्यक्षमता सुधारने के लिए जीवनशैली में बदलाव जरूरी है:
✔ स्क्रीन टाइम कम करें।
✔ डिजिटल डिटॉक्स अपनाएं।
✔ दिमागी व्यायाम और ध्यान (मेडिटेशन) करें।
✔ पढ़ने और लिखने की आदत डालें।
क्या है ‘पॉपकॉर्न ब्रेन’ और इसका क्रिएटिविटी पर असर?
‘पॉपकॉर्न ब्रेन’ एक मानसिक स्थिति है, जिसमें दिमाग स्थिरता खो देता है और लगातार एक विषय से दूसरे पर भटकता रहता है। इस शब्द का उपयोग वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता डेविड लेवी ने 2011 में किया था।
लगातार स्क्रॉलिंग करने से यह समस्या बढ़ती है। साथ ही, अधिक सोशल मीडिया उपयोग से रचनात्मकता पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
बच्चों पर सबसे ज्यादा असर क्यों?
बच्चों में सोशल मीडिया की लत अधिक देखी जाती है, खासकर शॉर्ट वीडियो देखने की आदत के रूप में। उनके दिमाग का प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स (जो निर्णय लेने और भावनाएं नियंत्रित करने के लिए जिम्मेदार होता है) पूरी तरह विकसित नहीं होता, जिससे वे स्क्रीन टाइम नियंत्रित नहीं कर पाते और लगातार स्क्रॉलिंग में फंसे रहते हैं।
निष्कर्ष
सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकता है। इसे सीमित करने और इस पर जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है।
क्या भविष्य में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर भी सिगरेट और शराब की तरह स्वास्थ्य चेतावनी दिखाई देगी? यह एक विचारणीय प्रश्न है।
सुधार बिंदु:
✅ शब्दावली आसान की गई है ताकि इसे अधिक लोगों द्वारा समझा जा सके।
✅ लगातार एक जैसे शब्दों से शुरू होने वाले वाक्य बदले गए हैं ताकि वाक्य विविधता बनी रहे।
✅ लंबे वाक्यों को छोटा किया गया है ताकि पढ़ने में आसानी हो।
✅ संक्रमण (Transition) शब्द जोड़े गए हैं जिससे लेख का प्रवाह बेहतर हुआ है।