सिंधी व्यंजन अपनी समृद्ध और स्वादिष्ट विरासत के लिए मशहूर है, और इसका एक सबसे प्रिय व्यंजन, दाल पकवान, इसका जीवंत उदाहरण है। हालांकि, बहुत कम लोग जानते हैं कि दाल पकवान की उत्पत्ति एक पारंपरिक व्यंजन सिंधी टिक्कड़ से हुई थी, जो एक साधारण लेकिन पोषक फ्लैटब्रेड था। समय के साथ, यह साधारण रोटी बदलकर कुरकुरी पकवान और मसालेदार दाल के स्वादिष्ट संयोजन में तब्दील हो गई, जिसे आज एक क्लासिक सिंधी नाश्ते के रूप में जाना जाता है।

सिंधी टिक्कड़ का ऐतिहासिक महत्व
बीमर फूड्स की संस्थापक और भोजन प्रेमी बिरजा राउत बताती हैं, “सिंधी टिक्कड़ सिंधी समुदाय के दिलों में एक खास जगह रखता है। इसका इतिहास सिंधी परिवारों के दैनिक जीवन में गहराई से जुड़ा हुआ है, खासकर उस समय में जब सिंधी समुदाय सिंध क्षेत्र (जो अब पाकिस्तान में है) में रहता था।”
टिक्कड़ एक मोटी, भारी, बिना खमीर वाली रोटी है जो गेंहू के आटे, बेसन और मसालों के मिश्रण से बनाई जाती है। यह सिंधी घरों में एक मुख्य भोजन हुआ करती थी। राउत के अनुसार, “इसकी सरलता और पौष्टिकता ने इसे मजदूरों, किसानों और उन लोगों के लिए एक आदर्श भोजन बना दिया, जिन्हें पूरे दिन के काम के लिए ऊर्जा की जरूरत होती थी।”
ऐतिहासिक रूप से, सिंधी टिक्कड़ बेहद साधारण सामग्री से बनाई जाती थी जो अधिकांश सिंधी रसोई में आसानी से मिल जाती थी। आटा गेंहू के आटे और बेसन को मिलाकर बनाया जाता था और उसमें काली मिर्च, जीरा, और कभी-कभी धनिया पाउडर जैसे मसाले मिलाए जाते थे।
राउत कहती हैं, “घी या तेल का उपयोग रोटी को समृद्ध बनाता था, जिससे यह अधिक पौष्टिक और लंबे समय तक ताज़ा रहती थी, जो उस समय आवश्यक था जब रेफ्रिजरेशन की सुविधा नहीं थी। आटे को सख्त गूंथा जाता था, मोटी गोलाई में थपथपाया जाता था और फिर मध्यम आँच पर तवे पर सेंका जाता था, जिससे इसकी बाहरी परत हल्की खस्ता हो जाती थी। टिक्कड़ की घनी बनावट इसे प्याज, हरी मिर्च या दही जैसे साधारण लेकिन स्वादिष्ट संगतों के साथ खाने के लिए उपयुक्त बनाती थी।”
टिक्कड़ केवल भोजन नहीं था; यह सिंधी संस्कृति की सादगी, सहनशीलता और सीमित संसाधनों में भी जीने की कला का प्रतीक था। राउत बताती हैं, “इसका बनाना अक्सर सामूहिक कार्य होता था, खासकर महिलाओं के बीच, जो बड़े बैचों में टिक्कड़ बनाती थीं ताकि परिवार के सभी सदस्य, विशेष रूप से खेतों में काम करने वाले पुरुष, लौटने पर एक पौष्टिक भोजन पा सकें।”
दाल पकवान में बदलने के पीछे के प्रभाव और कारण
सिंधी टिक्कड़ से दाल पकवान बनने की कहानी सांस्कृतिक बदलाव, प्रवास और सिंधी समुदाय की रचनात्मकता से प्रभावित है। राउत बताती हैं, “1947 में भारत के विभाजन के बाद, कई सिंधी परिवारों को सिंध से भारत के विभिन्न हिस्सों में बसना पड़ा। इस प्रवास ने सिंधी व्यंजनों को काफी हद तक प्रभावित और विकसित किया।”
इस बदलाव का एक मुख्य कारण सामग्री की उपलब्धता और विविधता थी। साधारण टिक्कड़ के विपरीत, पकवान — एक कुरकुरी, डीप फ्राइड रोटी, जो मैदा से बनाई जाती है — ने नए प्रकार के स्वाद और बनावट को जन्म दिया।
राउत बताती हैं, “सिंधी समुदाय ने उपलब्ध सामग्रियों के साथ प्रयोग करना शुरू किया। टिक्कड़ में इस्तेमाल होने वाले गेंहू और बेसन के संयोजन के बजाय, उन्होंने मैदा का उपयोग करके हल्की और खस्ता रोटी बनानी शुरू की, जिसे पकवान कहा गया। इसमें टिक्कड़ के कुछ मसाले शामिल थे, लेकिन इसकी कुरकुरी बनावट और परतदार स्वाद ने इसे अलग बना दिया।”
राउत यह भी जोड़ती हैं कि इस कुरकुरी पकवान को मसालेदार चने की दाल के साथ परोसने से “जादू जैसा स्वाद” उत्पन्न हुआ। दाल पकवान के रूप में यह व्यंजन स्वाद और बनावट का आदर्श मिश्रण बन गया — पकवान की कुरकुराहट और चना दाल की कोमलता एकदम मेल खाती थी। यह व्यंजन विशेष रूप से सिंधी परिवारों में नाश्ते के रूप में लोकप्रिय हुआ और त्योहारों व विशेष अवसरों का अभिन्न हिस्सा बन गया।