ब्राजील के सर्वोच्च न्यायालय ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर 8.1 मिलियन ब्राज़ीलियाई रीसिस (लगभग 1.4 मिलियन अमेरिकी डॉलर) का जुर्माना लगाया है। यह दंड अदालत के आदेशों का पालन न करने के कारण लगाया गया।
एक्स ने डेटा प्रदान करने से किया इनकार
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश एलेक्जेंडर डी मोरेस ने जुलाई 2024 में आदेश दिया था कि एक्स और मेटा को एलन डॉस सैंटोस के अकाउंट को ब्लॉक करने, प्रतिबंधित करने और उससे संबंधित पंजीकरण डेटा उपलब्ध कराने की कार्रवाई करनी होगी।

एक्स ने खाते को ब्लॉक तो कर दिया, लेकिन यह दावा किया कि उसके पास उपयोगकर्ता का डेटा नहीं है, क्योंकि यह संग्रहित ही नहीं किया गया था और उपयोगकर्ता का ब्राजील से कोई तकनीकी संबंध नहीं था।
हालांकि, न्यायाधीश डी मोरेस ने इस दावे को खारिज कर दिया और अगस्त 2024 में एक्स पर 100,000 ब्राज़ीलियन रीसिस (लगभग 17,500 अमेरिकी डॉलर) का दैनिक जुर्माना लगाया। अक्टूबर 2024 तक यह जुर्माना 8.1 मिलियन ब्राज़ीलियन रीसिस तक पहुंच गया।
एक्स की अपील हुई खारिज, भुगतान का आदेश
एक्स ने जुर्माने के खिलाफ अपील दायर की, लेकिन बाद में अदालत को सूचित किया कि वह राशि का भुगतान करने को तैयार है। बुधवार को न्यायालय ने तत्काल जुर्माने का भुगतान करने का आदेश जारी किया। हालांकि, यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि एक्स ने पंजीकरण डेटा प्रदान किया या नहीं।
ब्राजील में एक्स के खिलाफ पूर्व में भी कार्रवाई
यह पहली बार नहीं है जब ब्राजील की अदालत ने एक्स के खिलाफ सख्त कदम उठाया हो। पिछले साल, जब एक्स ने ब्राजील में अपने सभी कर्मचारियों को निकालने का फैसला किया था, तो न्यायाधीश डी मोरेस ने कंपनी के कानूनी प्रतिनिधि की गिरफ्तारी की धमकी दी थी। ब्राजील के कानूनों के अनुसार, विदेशी कंपनियों को देश में एक कानूनी प्रतिनिधि रखना अनिवार्य है ताकि वे न्यायालय के आदेशों का पालन कर सकें।
एलन मस्क बनाम न्यायाधीश डी मोरेस: विवाद जारी
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स के मालिक एलन मस्क और न्यायाधीश डी मोरेस के बीच पहले भी कई बार टकराव हो चुका है। मस्क ने डी मोरेस को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का विरोधी और अपराधी कहा था। वहीं, डी मोरेस के फैसलों को बार-बार न्यायपालिका का समर्थन मिला है, जिसमें एक्स के राष्ट्रव्यापी बंद और जुर्माने का आदेश भी शामिल है।
👉 निष्कर्ष: ब्राजील की अदालत ने कानून के पालन को सुनिश्चित करने के लिए सोशल मीडिया कंपनियों के खिलाफ सख्त रुख अपनाया है। यह मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और डिजिटल प्लेटफार्मों की जवाबदेही के बीच संतुलन बनाने की चुनौती को दर्शाता है।