देबिना बनर्जी ने हाल ही में अपने सफेद बालों को रंगने के फैसले के बारे में खुलकर बात की, यह स्वीकार करते हुए कि वह बढ़ती उम्र को अपनाने से नहीं डरती।
उन्होंने अपनी इंस्टाग्राम स्टोरी में लिखा,
“बुढ़ापा तो अवश्यंभावी है, और मैं इसे पूरे दिल से अपनाती हूं। लेकिन जब कुछ चीजें मेरे नियंत्रण से बाहर हैं, तो यह जानकर सुकून मिलता है कि जीवन के कुछ पहलू मेरे हाथ में हैं। अपने सफेद बाल रंगना भी एक ऐसा ही निर्णय है। यह उम्र छुपाने के बारे में नहीं, बल्कि इस बात को अपनाने के बारे में है कि मैं अपने जीवन में कैसे दिखना चाहती हूँ—जैसे फिट रहने के लिए एक्सरसाइज करना। यह एक छोटा सा कदम है, जो मुझे ऊर्जावान और आत्मविश्वासी महसूस कराता है।”

उन्होंने यह भी कहा कि खुद को बिना सफेद बालों के देखना उन्हें तुरंत आत्मविश्वास देता है।
“आईने में खुद को देखकर अच्छा महसूस करना, संवार कर और ऊर्जावान दिखना एक सुकून देने वाली बात है। यह उम्र को नकारने के बारे में नहीं, बल्कि यह चुनने के बारे में है कि मैं कैसा महसूस करना चाहती हूं। मेरे लिए, यह आत्म-स्वीकृति और आत्मविश्वास के साथ जीने का तरीका है। जीवन हमें बहुत कुछ देता है, और उसे अपनाने में सुंदरता है, लेकिन उन चीजों को नियंत्रित करने में भी सुंदरता है, जो हमारे हाथ में हैं। मेरे सफेद बालों को रंगना समय से लड़ने के बारे में नहीं, बल्कि अपनी शर्तों पर जीवन का जश्न मनाने के बारे में है। और यह हर दिन खुद को और अधिक जीवंत महसूस कराने का एक शक्तिशाली तरीका है।”
सफेद बाल रंगने को लेकर शर्मिंदगी महसूस करने की जरूरत नहीं
उनका यह बयान इस बात की याद दिलाता है कि सफेद बाल रंगने को लेकर शर्मिंदगी महसूस करने की जरूरत नहीं है।
वॉकहार्ट हॉस्पिटल्स, मीरा रोड की मनोचिकित्सक डॉ. सोनल आनंद के अनुसार, सफेद बाल अक्सर बुढ़ापे का प्रतीक माने जाते हैं।
उन्होंने कहा, “समाज महिलाओं पर हर उम्र में जवां दिखने का दबाव डालता है। इस दौड़ में, कई महिलाएं सफेद बालों को स्वीकार करने की बजाय तुरंत उन्हें रंग देती हैं। कुछ तो इस डर से सामाजिक आयोजनों में जाने से भी बचती हैं कि कहीं लोग उन्हें जज न करें। लेकिन असली सुंदरता और युवा दिखना आत्म-विश्वास से आता है, न कि इस बात से कि आपके बाल कितने सफेद हैं। जैसे पुरुष अपने सफेद बालों को आत्मविश्वास से दिखाते हैं, वैसे ही महिलाओं को भी करना चाहिए।”
क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट दिव्या रतन ने भी इससे सहमति जताते हुए कहा कि सफेद बाल रंगना पूरी तरह से व्यक्ति की पसंद पर निर्भर करता है।
“इसका जवां दिखने या उम्र से कोई लेना-देना नहीं है। अगर इससे किसी को आत्म-विश्वास और नियंत्रण का अहसास होता है, तो यह खुद को अपनाने का एक शानदार तरीका है। किसी को भी ऐसे फैसले लेने में शर्मिंदगी महसूस नहीं करनी चाहिए।”
डॉ. आनंद ने इसे मेकअप या फैशनेबल कपड़े पहनने जैसा बताया।
“यह आत्म-अभिव्यक्ति का एक रूप है। लोगों को समझना चाहिए कि आप सफेद बालों के साथ भी आत्मविश्वासी और खूबसूरत दिख सकते हैं। चाहे उन्हें छुपाना हो या अपनाना, यह पूरी तरह से आपकी पसंद है।”