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कुम्भ मेलाअमृत कलश की बूंदों से सृजित पवित्र मेला: पढ़ें महाकुंभ की कथाकुम्भ मेला

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ मेला आयोजित हो रहा है। इस महाकुंभ का समापन 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के अवसर पर होगा। देश के विभिन्न हिस्सों से लोग श्रद्धा की डुबकी लगाने प्रयागराज आ रहे हैं। ऐसा माना जाता है कि महाकुंभ में आस्था की डुबकी लगाने से व्यक्ति के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। परंतु क्या आप जानते हैं कि महाकुंभ की शुरुआत कैसे हुई और इसका आध्यात्मिक इतिहास क्या है? आइए आज इस विषय पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करें।

महाकुंभ की शुरुआत कैसे हुई?

पौराणिक कथा के अनुसार, देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था। इस मंथन से अनेक अद्भुत वस्तुएं निकली थीं, जिनमें से एक थी अमृत कलश। अमृत की रक्षा का दायित्व विष्णु, सूर्य, चंद्र और इंद्र को सौंपा गया। कहा जाता है कि देवताओं ने असुरों को चकमा देकर अमृत कलश को ले जाने का प्रयास किया, जिससे देवताओं और असुरों के बीच बारह वर्षों तक युद्ध हुआ।

युद्ध के दौरान अमृत कलश की कुछ बूंदें पृथ्वी के चार स्थानों – हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में गिरीं। इन स्थानों को पवित्र माना जाता है और कहा जाता है कि यहां स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसी कारण से इन स्थानों पर हर 12 वर्षों में कुंभ मेले का आयोजन होता है।

यहां एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रयागराज में लगने वाले कुंभ मेले का विशेष महत्व है। यह वह स्थान है, जहां बुद्धिमत्ता का प्रतीक सूर्य उदित होता है। इसे ब्रह्मांड का उद्गम और पृथ्वी का केंद्र माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि ब्रह्मांड की रचना से पहले ब्रह्माजी ने यहीं अश्वमेघ यज्ञ किया था। दश्वमेघ घाट और ब्रह्मेश्वर मंदिर आज भी इस यज्ञ के प्रतीक के रूप में यहां मौजूद हैं।

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महाकुंभ का महत्व

महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह लाखों लोगों की आस्था का प्रतीक भी है। यह पर्व हमारी सांस्कृतिक परंपराओं को संजोने और धर्म को समाज से जोड़कर रखने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। यही कारण है कि देश-विदेश से लोग “हर-हर गंगे” के जयकारों के साथ अपनी आस्था और भक्ति को लेकर यहां आते हैं। संगम के पवित्र घाट पर डुबकी लगाते समय जब श्रद्धालु मां गंगे का जयकारा लगाते हैं, तो ऐसा प्रतीत होता है मानो पूरा जनसमूह एक हो गया हो।

महाकुंभ के दौरान शाही स्नान का विशेष महत्व होता है। इस अवसर पर पवित्र नदी में आस्था की डुबकी लगाना और अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान-दक्षिणा देना, जीवन के सभी दुख-संकटों को दूर करने वाला माना जाता है।

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